इतना गरूर न कर निकल जायेगा इक दिन,
यह जनता का दरबार है,
जरा झुक कर चलना यहाँ पर,
बड़े बड़े दिग्गज को धुल चटा दी है,
कुमार विश्वाश क्या चीज है,
न जाने कितनो को धूल में मिला दी है,
दौर यह बड़ा नाजुक है,
पहली बार सर उठाया है तुमने.
सर झुका कर चलना कुमार साहब
..जनता जनार्दन है पल में कुछ भी कर सकती है.
.घमंडी चेहरों की क्या बिसात
जो इन से पंगा ले ले..
मैने बहुतो को देखा है,
राजा से रंक होते हुए..
.आप नेता होते तो शायद ऐसा न कहते,
बस तजुर्बा अभी आपका बड़ा फिक्का है !!
अजीत तलवार
मेरठ
यह जनता का दरबार है,
जरा झुक कर चलना यहाँ पर,
बड़े बड़े दिग्गज को धुल चटा दी है,
कुमार विश्वाश क्या चीज है,
न जाने कितनो को धूल में मिला दी है,
दौर यह बड़ा नाजुक है,
पहली बार सर उठाया है तुमने.
सर झुका कर चलना कुमार साहब
..जनता जनार्दन है पल में कुछ भी कर सकती है.
.घमंडी चेहरों की क्या बिसात
जो इन से पंगा ले ले..
मैने बहुतो को देखा है,
राजा से रंक होते हुए..
.आप नेता होते तो शायद ऐसा न कहते,
बस तजुर्बा अभी आपका बड़ा फिक्का है !!
अजीत तलवार
मेरठ